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खिलता हुआ पलाश  

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प्रथम मिलन के साथ
मिला था,
हँसता हुआ पलाश
रूप रंग खिल उठे
दिखा जब
खिलता हुआ पलाश

तुम भेटी
ज्यों नवल वल्लरी
मैं बिरवा था वन का
छुअन अधर की
मिलन हुआ था
तपित देह का मन का
खिले फूल
मुसकाया उपवन
दर्शक बना पलाश

गंधाई थी
मदन मालती
हुए सिंदूरी गाल
अंग अंग सिमटे लाजों से
झरते रहे गुलाल
होली गाता रंग लुटाता
नर्तक लगा पलाश

फागुन आया
वासंती का
लेकर नव संदेश
भौंरों ने सुलझाए उलझे
कचनारों के केश
हमें बहकता देख रहा था
तट पर खड़ा पलाश

-श्याम बिहारी सक्सेना
२० जून २०११

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