अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

रंग टेसू ने उड़ाए फाग के  

.
सज गई हैं फिर
बहारें आम पर
लौट सूरज आ गया है
काम पर
फूल कर सरसों
बहुत इतरा गई
डालियाँ कचनार की
गदरा गई
झुरमुटों में कुहकतीं शहनाइयाँ।

चमक लौटी है
सुबह के भाल पर
किरन गुदने लिख रही हैं
गाल पर
रंग टेसू ने उड़ाए
फाग के
दिन बसंती
प्यार के अनुराग के
सिर चढ़ी सी हो गईं पुरवाइयाँ।

फागुनी दिन,
औऱ, महुआ पी गए
फाग-मस्ती-रूप के-
ठनगन नए
पाँव भारी
और
भरते रस कलश
खेत में सोना झरेगा
इस बरस
सपन लेते आँख में अंगडाइयाँ

-यतीन्द्रनाथ राही
२० जून २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter