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फिर कदंब फूले






 

फिर कदम्ब फूले !

फिर कदम्ब फूले
गुच्छे-गुच्छे मन में झूले

पिया कहाँ?
हिया कहाँ?
पूछे तुलसी चौरा,
बाती बिन दिया कहाँ?

हम सब कुछ भूले
फिर कदम्ब फूले

एक राग
एक आग
सुलगाई है भीतर
रातों भर जाग-जाग

हम लंगड़े-लूले
फिर कदम्ब फूले

वत्सल-सी
थिरजल-सी
एक सुधि बिछी भीतर,
हरी दूब मखमल-सी

कोई तो छूले
फिर कदम्ब फूले

--दिनेश सिंह
१५ फरवरी २०११

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