अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

कहाँ तुम गए कदंब!





 
कदंब के पेड़ तले
आओ झूले डालें।
रंग बिरंगी रस्‍सी लाएँ
झूले में पाटा लगवाएँ।

आसपास से सखियाँ आईं
हँसी की फुलझडि़याँ लाईं।

कदंब बड़ा खुश था
खुशी के मारे झूम रहा था।
अपनी शाखें, पत्‍ते पसारकर
मानो बच्‍चों को बाहों में भरकर
दे रहा था अपना दुलार।

बड़े बूढ़े भरी दुपहरिया में
असीस रहे थे कदंब को।
उसकी शीतल छाँव में
तन शीतल था, मन शीतल था।

आज यह सब याद आया
कहाँ गया कदंब, कहाँ गई छाया?
इस पत्‍थर के शहर ने
सब काट दिया, सब लील लिया।

--मधु अरोड़ा
१३ जुलाई २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter