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एक कदंब का पेड़ था






 
एक कदंब का पेड़ था
यमुना जी के तीरे
आती थी उसकी एक डाली
अंगना धीरे-धीरे

बिटिया ता पर झुला झूले
मन में कुसुमित फूले
बाबा खटिया पर बैठे जब
गुड-गुड हुक्का पीले

तभी समय कुछ ऐसा बदला
ख़ुशियों के पल खोए
बाबा ने बनवास संभाला
बेटे काटें बोएँ

बटा निवाला,  खेत बटा
अलग हो गई थाली
स्वारथ ने आगे बढ़करके
विनय नम्रता खा ली

पेड़ कदंब दुखी कर डाला
फूल पत्तियाँ तोड़ी
छाल छील डाली सारी औ'
जड़ें तलक न छोड़ीं

उड़ गए पंछी जीवन रोया
नीड़ हो गया खाली
ठंडा हुक्का सूनी खटिया
पेड़ बचा न माली

--रचना श्रीवास्तव
१३ जुलाई २००९

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