अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

तीन चौपदियाँ





 


देखो पेड़ कदंब के फिर महके हैं
सोने जैसे पीले फूल खिले हैं
लेकिन हमदम तुम हो जाने कहाँ पर
आ जाओ अब मौसम भी बदले हैं

२.
बारिश मे फैली है खुशबू हर सू
बूँदों में है जैसे कोई जादू
गिरते फूल कदंब के जब रस्तों पर
मिट्टी से भी आती है फिर खुशबू


३.
गेंदों से ये पीले फूल कदंब के
गोरी राधा के कोमल सपनों से
सांवल शाखें किशना की बाहों सी
इन बाहों मे राधा झूला झूले.

--सतपाल ख़याल
१३ जुलाई २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter