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          एक टहनी रजनीगंधा की

 

 

एक टहनी रजनीगंधा की मुझे तुम सौंपना
चाहती मैं प्रीत के स्वर्णिम
पलों में लौटना

केश हैं
उलझे हुए से बल बहुत उनमें पड़े
लग रहा है स्वेद कण उनमें नगीनों से जड़े
इन लटों के बल समय पर
हो सके तो खोलना

भाद्रपद में
नैन गीले कह रहे दुखड़े कई
दूर मुझसे हैं ख़ुशी की धूप के टुकड़े कई
बोल मीठे दो अगर चाहो कभी
तो बोलना

छोड़ कर
मुझको अकेले तुम कभी जाना नहीं
कोई शिकवा और शिकायत मन में तुम लाना नहीं
आँख भर आए जो मेरी अश्रु
मेरे पोंछना

- आभा सक्सेना
१ सितंबर २०२१

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