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          रजनीगंधा शुभ्र पाँखुरी

 

 

रजनीगंधा शुभ्र पाँखुरी
जब-जब रैन खिले
मन का ताल हिले

बारहमासी लगी रहे
सुधियों की आवाजाही
पीर कलश में कर बोरे
दिल देता मौन गवाही
छेंके गैल कौन दुविधा के
करके खड़े किले
मन का ताल हिले

लगें अलोने तुम बिन दिन
है रैन नींद अनशन पर
विलगन ने जो घाव दिए
आ उन पर मरहम दो धर
दुनिया की बतकुच्चन से हैं
छाले विकट छिले
मन का ताल हिले

पीड़ा के सच्चे प्रतिनिधि
पलकों से रोज निचोरे
सतरंगी सपने भी उन संग
चुए मिलन के कोरे
संवादों को लकवा मारा
रहते अधर सिले
मन का ताल हिले

- अनामिका सिंह
१ सितंबर २०२१

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