अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

          रजनीगंधा जैसी महको

 

 

आँगन से देहरी वातायन
फुदक-फुदक
बस पल-पल चहको
रजनीगंधा जैसी महको

बाहर का मौसम बेढंगा
कैसे कोई लेगा पंगा
स्वर्णमयी सपनों के झोके-
मत भूले से इनमें बहको
रजनीगंधा जैसी महको

जीवन में रीतापन क्यों हो
बढ़ो जिधर सिर्फ जय विजय हो
उच्छृंखल वासना उदधि में
बड़वानल जैसी क्यों दहको
रजनीगंधा जैसी महको

अम्मा की पलछिन की उलझन
घर-घर दुष्यंतों की पलटन
अत्याचारी सम्मुख डटकर-
चण्डी सी डहक डहक डहको
रजनीगंधा जैसी महको

- अनिल कुमार वर्मा
१ सितंबर २०२१

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter