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          अद्भुत है संसार

 

 

अद्भुत है संसार तुम्हारा रजनीगंधा
इस दिल पर अधिकार तुम्हारा रजनीगंधा

कलियों ने खोला है घूँघट
आँगन महका
मन तितली सा नाच रहा
तन भँवरे सा बहका
खोया सपनों की गलियों में
हृदय हमारा
पाया इतना प्यार तुम्हारा रजनीगंधा

संगमरमरी बदन तुम्हारा
मन मोह रहा
मानो खुशियाँ द्वारे पर
आकर टोह रहा
कुम्हला जाता झेल न पाता
तनिक धूप भी 
तन कितना सुकुमार तुम्हारा रजनीगंधा

लगा रहेगा सुख दुख का घर
आना जाना
लिए अधर मुस्कान राह में
पलक बिछाना
कभी न खाली होने देना
दिव्य प्रेम की
खुशबू का भंडार तुम्हारा रजनीगंधा

- बसंत कुमार शर्मा
१ सितंबर २०२१

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