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          महका घर आँगन

 

 

खुशबू से महका घर-आँगन
घुला हवाओं में फिर चन्दन
उड़ा मचल कर प्रेम पतंगा
खिली द्वार पर रजनीगंधा

डाली-डाली फूल झरे हैं
चुटकी चुटकी गंध भरे हैं
पँखुरी-पँखुरी पात-पात पर
शबनम के मोती बिखरे हैं
लगा चहकने उपवन-उपवन
सुधियों का फिर मौन परिन्दा

रिमझिम झरती बरसातों में
मौसम की मीठी बातों में
खिल उठते हैं फूल प्यार के
चुपके से सूनी रातों में
मेघों की खिड़की से लुक छुप
झाँक रहा अम्बर से चंदा

मधु सुगन्ध के कलश उठाये
मदमाती चल रहीं हवाएँ
छुवन रेशमी कोमल कोमल
फिर सोये अहसास जगाये
कर देती तन-मन को पावन
ज्यों आँगन की तुलसी वृन्दा
खिली द्वार फिर रजनीगन्धा

- मधु शुक्ला
१ सितंबर २०२१

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