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          क्यों विचलित अंतर्मन

 

 

जाने क्यों विचलित अंतर्मन

खुशबू लेकर आई है हवा
या महक तुम्हारी साँसों की
सुरभित इस भींगे मौसम में
ज्यों मादकता हो बातों की
डूबा है यह जीवन, तन-मन

तुम रजनीगंधा सी बिहसी
मेरे सपनों की बगिया में
मैं गंध गंध मदभरा पवन
उन्मुक्त भ्रमर सा मेरा मन
रिमझिम बूंदों का आवर्तन

कुछ बात सुना जाती मन की
यह भोर भोर की नीरवता
धीरे-धीरे मन के आंगन-
उतरी सुधियो की शीतलता
पलकों पर ठहरे मुक्ताकन

- पद्मा मिश्रा
१ सितंबर २०२१

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