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          रजनीगंधा महका है

 

 

जीवन बगिया हरियाई तो
मन का पंछी चहका है
पौध लगाई नेह की घर में
रजनीगंधा महका है

भोर-साँझ नहीं कभी विचारी
रक्त से सींची रिश्ते-क्यारी
साँसो से जब करी गुड़ाई
खल-सी खरपतवार हटाई
धूप-छाँव से रक्षा पाकर
पुष्प तभी हर टहका है

आँगन जब कलियाँ मुसकाई
हर पल उनकी नज़र उतारी
मोती खिल-खिल दिखे चमकते
सदा दुआ दी रहें महकते
सिर पर हाथ फिराया तो ही
'रीत'! वो लहका-लहका है

- परमजीत कौर रीत
१ सितंबर २०२१

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