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          चाँदी सी मुस्कान

 

 

किसी फूल ने धूप चुराई
किसी ने चाहा प्रात
रजनीगंधा तूने फिर क्यों
चुनी अँधेरी रात

लगता जैसे चाँद से तेरा
जन्म-जन्म का नाता
श्वेत चाँदनी छिटके तुझ पर
नेह से तुझे रिझाता
संग तुम्हारे उसकी होती
कोई गुपचुप बात

खुशबू तेरी ओढ़ हवाएँ
इत-उत गीत सुनातीं
कभी बैठतीं तरु शिखरों पर
कभी गगन छू आतीं
भर-भर दोने बाँट रहीं वे
तेरी ही सौगात

और भी होंगे इत्र हाट में
तू अनुपम – बेजोड़
जूही चंपा कली चमेली
करतीं तुमसे होड़
चाँदी सी मुस्कान तुम्हारी
देती सबको मात

- शशि पाधा
१ सितंबर २०२१

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