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          महक उठी रजनीगंधा

 

 

रजनी की तरुणाई के संग
महक उठी रजनीगंधा
मौन प्रकृति के गंध गीत में
जागा बैरागी बंदा

घनी रात बस रात नही थी
कुछ पीड़ा कुछ टीस पुरानी
सीटी मार रहे थे झींगुर
छुपी गंध मे कई कहानी

गली गली कहना चाहे कुछ
दबा दबा स्वर था मंदा

फैल रही थी कुछ सुगंध पर
अंधकार भी घूर रहा था
महलों के मद्धिम प्रकाश मे
फूल अधखिला झूल रहा था

आधी रात गली शहरों मे
कली फूल का है धंधा

- उमेश मौर्य
१ सितंबर २०२१

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