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ये शिरीष के पेड़
 

हम घनी जिस छाँव के
आँचल तले हैं
ये शिरीष के पेड़ भी
कितने भले हैं!

कल हवा जब छू टहनियाँ
बह रही थी
एक चिड़िया पेड़ से हँस
कह रही थी

फूल फर वाले, ये ऐसे
दीखते हैं
ज्यों शिरीष पर हाथ के
पंखे लगे हैं!

ये हैं यायावर, चलें देखें
न मुड़ के
ये हवा के साथ बस नाचे-
हैं उड़ के

हैं कभी भोले, कभी
चंचल मना हैं
लग रहा सोये, मगर
सच - में जगे हैं!

पेड़ को बच्चों सा ये, कस-
कर हैं भींचे
हाथ छूटा, तो बिखर
जायेंगे नीचे

इस तरह से सहज बिछते
हैं ज़मीं पर
ज्यों हरे भू पर ग़लीचे-
से बिछे हैं!

- कृष्ण भारतीय  
 
१५ जून २०
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