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शिरीष के फूल
 
फूल-फूल कर बजा रहे हैं
बीहड़ में रमतूल
धूप-रूप पर मुग्ध, पेंग भर
छेड़ें झूला झूल
न सुधरेंगे
शिरीष के फूल

तापमान का पान कर रहे
किन्तु न बहता स्वेद
असरहीन करते सूरज को
तनिक नहीं है खेद
थर्मामीटर नाप न पाये
ताप, गर्व निर्मूल
कर रहे हँस
शिरीष के फूल

भारत की जनसँख्या जैसे
खिल-झरते हैं खूब,
अनगिन दुःख, हँस सहे न लेकिन
है किंचित भी ऊब
माथे लग चन्दन सी सोहे
तप्त जेठ की धूल
तार देंगे
शिरीष के फूल

हो हताश एकाकी रहकर
वन में कभी पलाश,
मार पालथी, तुरत फेंट-गिन
बाँटे-खेले ताश
भंग-ठंडाई छान फली संग
पीकर रहते कूल,
हमेशा ही
शिरीष के फूल

जंगल में मंगल करते हैं
दंगल नहीं पसंद,
फाग, बटोही, राई भाते
छन्नपकैया छंद
ताल-थाप, गति-यति-लय साधें
करें न किंचित भूल,
नाचते सँग
शिरीष के फूल

संसद में भेजो हल कर दें
पल में सभी सवाल,
भ्रमर-तितलियाँ गीत रचें नव
मेटें सभी बबाल
चीन-पाक को रोज चुभायें
पैने शूल-बबूल
बदल रँग-ढँग
शिरीष के फूल

- आचार्य संजीव वर्मा सलिल
१५ जून २०
१६

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