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याद तुम्हारी सिरस फूल सी
 

याद तुम्हारी सिरस फूल सी
भरे जेठ में भी सावन सी लहराती है

बिन आहट बिन
दस्तक आकर
उलझन का पल
पल सुलझाकर
याद तुम्हारी अलस भोर ही
सिरस पात सी फुनगी फुनगी इतराती है

लिपटी रहती है
आँचल सी
नटखट सी चंचल-
चंचल सी
याद तुम्हारी सिरस डाल सी
पुरवाई संग झूम न जाने क्या गाती है

तितर-बितर कर
सिमटा संयम
मदमाते से बुन-
कर मौसम
याद तुम्हारी सिरस कली सी
अंतर्मन का कोना कोना महकाती है

कल में, आज
अभी में, कल में
पल में, पल पल
के पल पल में
याद तुम्हारी सिरस गंध सी
बिन सोचे, खुद ही आती खुद ही जाती है

- सीमा अग्रवाल
१५ जून २०
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