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मक्की के बेटे






 
आँखों को सुख देख देख कर
खेतों में हरियाली

कलरव करते तोतों के दल
खेतों में हैं उतरे
साँवा, कोदों और धान की
मस्त बालियाँ कुतरें
ढोल बजाते बच्चे बैठे
करते हैं रखवाली

बड़े हुए मक्की के बेटे
निकल रही हैं मूँछें
उधर किसानिन मुसकाकर के
फिर किसान से पूछे
अपना कुठिला कई साल तक
रहे न अब तो खाली

रहम करे कुछ ऊपर वाला
नजर न लगने पाये
ईश्वर चाहे चंद्र,चाँदनी
फिर से पढ़ने जायें
सही सलामत सब कुछ होगा
अच्छा हो यदि माली

- बृजनाथ श्रीवास्तव
१ अगस्त २०२०

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