अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

वो भुट्टे के दाने






 
वो बारिश की बूँदे वो भुट्टे के दाने
कहाँ मेरी क़िस्मत जगेगी न जाने

मुझे इन हवाओं ने पागल बनाया
न तूफ़ान आया न सागर हिलाया
बदलते रहे
वक़्त रहते ठिकाने

उमर खट गई दर्द रिसता रहा पर
ये तालाब था काई वाला यहीं पर
यहीं पर कहीं
दफ़्न हैं कुछ फ़साने

इन्हीं रास्तों ने था चलना सिखाया
यहीं पर बहुत ठोकरों ने गिराया
संभलते रहे
चोट खाकर दीवाने

जो सीली सी ख़ुशबू थी ठेले किनारे
नमक नींबू चटखारे के थे वे शिकारे
किधर खो गये है
वो गुज़रे ज़माने

सिहरता हुआ काँपता सा रहा तन
मगर भीगता और भिगोता रहा मन
कहाँ उड़ गई
पीली छतरी न जाने

- रंजना गुप्ता
१ सितंबर २०२०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter