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भुने हुए भुट्टे     






 

मुरचा खाई हुई अँगीठी
खुली सड़क पर बेच रही है
भुने हुए भुट्टे

वर्तमान की एक झलक में,
भूतकाल आया,
आनेवाली किरणों में है
सूरज की काया
एक अंक का यह एकांकी
रह-रह अपने अंगों को ही
चुटकी से चुट्टे

कहीं आँच में दमक नहीं है
सोई हैं लपटें
बंद गली की तिमिर-घुटन में
बिल्ली की झपटें
दुःख के बादल घने गगन में
नहीं जेब में फूटी कौड़ी
नहीं मिले छुट्टे

कई दिनों से पड़ा हुआ है
जरित पेट खाली
झोंपड़ियों के बेर्ह सँभाले
दो दिन से थाली
आते रोज तगादे वाले
गुट्टे के गुट्टे

-शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'
१ सितंबर २०२०

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