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    गंगाराम लगाता ठेला






 

लड़की के हाथों में भुट्टा
होठों पर मुस्कान
लक्ष्मी जी ने करी बोहनी
खुश है गंगाराम

गंगाराम लगाता ठेला
रोज,गली के बाहर
धीमी-धीमी आँच
सेंकता भुट्टे घुमा घुमाकर
भुने हुए भुट्टों पर-
थोड़ी चटनी हरी, लगाता
बड़े जतन से उसपर नीबू
घिसता गंगाराम

सोंधी गंध, भुने भुट्टों की
हवा में घुलती जाती
बाबू-अफसर, मिस्टर-सिस्टर
सबको पास बुलाती
गंगाराम अदब से सबका-
करता है अभिवादन
कहता है आदाब किसी को
किसी को सीताराम

बहुत दिनों के बाद
गली में आज लगाया ठेला
हुए कोयले राख सुलग कर
पैसा मिला न धेला
उस पर एक दरोगा जी ने-
आकर लट्ठ बजाया
दिल ही दिल में आँसू पीकर
लौटा गंगाराम

बैरी कोरोना ने
उसकी खुशियाँ सारी छीनीं
यों भी उसके सपनो की थी
चादर झीनी-झीनी
कैसे पार लगे अब नैया -
जाने राम रमैया
नाश जाए इस कोरोना का
जीना हुआ हराम

- डॉ० शिवजी श्रीवास्तव
१ सितंबर २०२०

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