अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

भुट्टा






 

तन हरा मन भरा दाँत मोती लसे
मूँछ के ताव का कोई सानी नहीं

पर्त पर पर्त छिलकों से झाँपा हुआ
अनछुआ सा बदन सिर्फ भाँपा हुआ
जन्म से माँ कमर पर बिठाये हुए
तेल उबटन किये खुब सजाये हुए
बीस दिन में जवानी चढ़ी झूमकर
लाल धरती का मैं आसमानी नहीं

स्वाद में गंध में सोंधपन बस गया
जब तपा आग में यश मिला रस गया
मसखरी, कहकहे, खूब ठठ्ठे हुए
एक दाना लड़ा पस्त पट्ठे हुए
मिर्च, धनिया व लहसुन की चटनी पिसी
लेप अंतिम बनी, ये कहानी नहीं

देह का दान कर वह घमंडी हुआ
इसलिए दस मिनट बाद डंडी हुआ
धर्म को छोड़ जो अर्थ पर आ गया
खेत, बाजार में भाव कुछ पा गया
छोड़कर रीतियाँ नीतियाँ बाप की
वर्ण-संकर हुआ, खानदानी नहीं

- उमा प्रसाद लोधी
१ सितंबर २०२०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter