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रामभजन क्यों छोड़ दिया

 
मन राम भजन क्यों छोड़ दिया ?
हरि का सुमिरन क्यों छोड़ दिया?

विषय-विकार न तूने छोड़ा,
क्रोध-मोह से मुख ना मोड़ा,
सहज स्नेह का नाता भूला...
बस माया से रिश्ता जोड़ा,

कौड़ी तूने खूब सँभाली
पर रामरतन क्यों छोड़ दिया ?
मन राम भजन क्यों छोड़ दिया ?

निन्दा के रस में मन लागा,
प्रेम-भाव का तोड़ा धागा,
अपनों का दिल रोज़ दुखाया...
स्वारथ त्याग कभी ना जागा,

भ्रम के पथ पर चलते-चलते
अब सत्य कहन क्यों छोड़ दिया ?
मन राम भजन क्यों छोड़ दिया ?

भूल गया तू यह जग नश्वर,
सत्य यहाँ बस है परमेश्वर,
धन-यौवन-तन छन के साथी...
शाश्वत राम नाम ही इक स्वर,

सच्चा सुख बिसरा कर तूने
हरि नाम जपन क्यों छोड़ दिया?
मन राम भजन क्यों छोड़ दिया ?

कुन्तल श्रीवास्तव
१ अप्रैल २०२१

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