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       तैर रहे आँखों में

 
तैर रहे आँखों में रह-रह, उत्सव वाले दिन
कैसे भूले जा सकते हैं
वो मंगल पल-छिन

नवसंवत्सर पर घर- घर में कुंभ रखा जाना
नौ दिन माँ का पूजन करना रातें जगवाना
कन्याओं की पूजा करना, उनके पैर दबाना
मिल जाती थी खुशियाँ कितनी
हमको वो अनगिन

फसलों का उत्सव वैशाखी अम्बर में छा जाता
हँसी-खुशी के फव्वारों संग हर मन खुशी मनाता
सोलह दिन गोरी पूजन सब घर घर में करतीं हैं
अपनों से अपनों की मीठी
नोंक-झोक अनबन

मेला गणगौरी माँ का सभी देखने जाते
रंग-बिरंगे परिधानों में सजते सब इतराते
मेले का आनन्द अनूठा सब मस्ती में गाते
वो दिन थे धींगामस्ती के
उम्र बड़ी कमसिन

- सुरेन्द्र कुमार शर्मा
१ अप्रैल २०२१

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