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        चैत्र का उत्सव

 
चैत्र के शुभ आगमन पर
आत्मबल की लौ जगायें

फिर असुर बढ़ इस धरा पर
संस्कृति का चीर हरते
आस्था की देहरी को
नित्य ही अपवित्र करते
शक्तिरूपा देवियाँ !
फिर अस्त्र शस्त्रों को उठायें

कौन है जिसने तुम्हें
निर्बल कहा एवं डराया
कौन सा वह काम
जो तुमसे न होगा महामाया
आग अन्तर की जलाकर
रक्तबीजों को हरायें

सृष्टि के हर छोर से
हर पाप, हर संताप को हर
सत्य के उद्घोष से
भर दो जगत का सब चराचर
शक्ति के ही मंत्र गूँजें
चैत्र का उत्सव मनायें

- त्रिलोक सिंह ठकुरेला
१ अप्रैल २०२१

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