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देश किसका है
जनतंत्र की सोच को समर्पित कविताओं का संकलन
    आज हम मिल बैठकर
यह तय करे कि देश किसका है

जाँत पाँतों,
गुटों फिरकों सम्प्रदायों में
बाँटने के चल रहे षडयंत्र कितने
गाँव गड़वाँटो,
शहर गलियों मोहल्लो को
काटने के बन गये है यंत्र कितने

ढह रहे हैं घर, खेत तिड़के और दरके मन
हो गई नदियाँ इकहरी और उजड़े वन
जल रहे अंबर धरा बारूद से ऐसे
आज हम दिल जोड़कर
यह तय करें परिवेश किसका है।

रोटियाँ, रोजगार
और परिवार सब बौने हुये हैं
स्वप्न सारे दफन, तन टेढे, कुए औंधे हुये है
यह जमीं तो
राम की, रहमान की भी है
कृष्ण नानक सूर औ' रसखान की भी है

सिख हिन्दू और ईसाई मुसलमाँ
सब यहीं जन्मे यही सबका गुलिस्ताँ
राम और रहमान सबकी हस्तियाँ है
संत सूफी के मकां और बस्तियाँ है
आज जो तेरे उसूलो में, यार वह, ईमान मेरा है
आज अपने गिरेबाँ में झाँककर
यह देख ले कि
संत सूफी पादरी दरवेश किसका है।

आज हम मिल बैठकर
यह तय करे कि
देश किसका है
देश सबका है ! देश सबका है !!

-कमलेश कुमार दीवान
२४ जनवरी २०११

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