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शहीद के प्रति
जनतंत्र की सोच को समर्पित कविताओं का संकलन
    चाहता हूँ तुझको तेरे नाम से पुकार लूँ,
जी उठो तुम और मैं आरती उतार लूँ

धूल में मिला दिया घुसपैठियों की चाल को,
गर्व से ऊँचा उठाया भारती के भाल को
दुश्‍मनों को रौंदकर जिस जगह पे तू मरा,
मैं चूम लूँ दुलार से पूजनीय वो धरा
दीप यादों के जलाऊँ काम सारे छोड़कर...
चाहता हूँ कामनाएँ तेरे लिए वार दूँ,
जी उठो तुम और मैं आरती उतार लूँ

सद्भावना की ओट में शत्रु ने छद्म किया,
तू ने अपने प्राण दे ध्‍वस्‍त वो कदम किया
नाम के शरीफ थे फौज थी बदमाश उनकी,
इसीलिए तो सड़ गयीं रणभूमि में लाश उनकी
लौट आया शान से तू तिरंगा ओढ़कर...
चाहता हूँ प्‍यार से तेरी राह को बुहार दूँ,
जी उठो तुम और मैं आरती उतार लूँ

कर गयी पैदा तुझे उस कोख का एहसान है,
सैनिकों के रक्‍त से आबाद हिन्‍दुस्‍तान है
धन्‍य है मइया तुम्‍हारी भेंट में बलिदान में,
झुक गया है देश उसके दूध के सम्‍मान में
दे दिया है लाल जिसने पुत्रमोह छोड़कर...
चाहता हूँ प्‍यार से पाँव वो पखार दूँ,
जी उठो तुम और मैं आरती उतार लूँ

लाडले का शव उठा बूढ़ा चला शमशान को,
चार क्‍या सौ-सौ लगेंगे चाँद उसकी शान को
देश पर बेटा निछावर शव समर्पित आग को,
हम नमन करते हैं उनके देश से अनुराग को
स्‍वर्ग में पहले गया बेटा पिता को छोड़कर...
इस पिता के पाँव छू आशीष लूँ और प्‍यार लूँ,
जी उठो तुम और मैं आरती उतार लूँ

शत्रु की नापाक जिद में जंग खूनी हो गई,
जाने कितनी नारियों की माँग सूनी हो गयी
गर्व से फिर भी कहा है देख कर ताबूत तेरा,
देश की रक्षा करेगा देखना अब पूत मेरा
कर लिए हैं हाथ सूने चूडि़यों को तोड़कर.....
वंदना के योग्‍य देवी को सदा सत्‍कार दूँ,
जी उठो तुम और मैं आरती उतार लूँ

सावन का अंतिम दिवस दोहरायेगा इस बात को,
झेलती मासूम बहना इस विकट आघात को
ताकती राखी लिए तेरी सुलगती राख में,
न बचा आँसू कोई उस लाडली की आँख में
ज्‍यों निकल जाए कोई नाराज हो घर छोड़कर...
चाहता हूँ भाई बन मैं उसे पुचकार दूँ,
जी उठो तुम और मैं आरती उतार लूँ

कौन दिलासा देगा नन्‍हीं बेटी नन्‍हें बेटे को,
भोले बालक देख रहे हैं मौन चिता पर लेटे को
क्‍या देखें और क्‍या न देखें बालक खोए खोए से,
उठते नहीं जगाने से ये पापा सोए सोए से
चला गया बगिया का माली नन्‍हें पौधे छोड़कर...
चाहता हूँ आज उनको प्‍यार का उपहार दूँ,
जी उठो तुम और मैं आरती उतार लूँ

विध्‍वंस की बातें न कर बेवजह पिट जायेगा,
तू मिटेगा साथ तेरा वंश भी मिट जाएगा
सीख ले इंसानियत कुछ विश्‍व में सम्‍मान हो,
हम नहीं चाहते तुम्‍हारा देश कब्रिस्‍तान हो
उड़ चली अग्नि अगर सारे बंधन तोड़कर...
चाहता हूँ आज फिर दुश्मन को मैं ललकार दूँ,
जी उठो तुम और मैं आरती उतार लूँ

-पवन चंदन
२४ जनवरी २०११

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