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        ग्रीष्मी कुंडलियाँ

 



महँगाई सी दोपहर, सदाचार सी प्रात
घोटालों से दिन हुए, नीति वाक्य सी रात
नीति वाक्य सी रात, भूमि सब लगती बन्ध्या
नेताओं के शिथिल, आचरण जैसी सन्ध्या
नई बहू खा आम, कर रही है उबकाई
बढ़ी सास की खुशी, बढ़ रही ज्यों महँगाई



सूरज को रिश्वत खिला, फैला कठिन कुतन्त्र
ग्रीष्म-माफिया रच रहा, अब भीषण षड्यंत्र
अब भीषण षड्यंत्र, समानांतर शासक है
शूटर हैं लू, धूप, बबंडर अनुशासक है
आंधी है प्रेयसी, रचाये मार्क सज-धज
कौन मिलाए आँख, अशीशें जब खुद सूरज



सहमा-सहमा कमल वन, सूखे पोखर-ताल
सूरज गुस्से से हुआ, अब अगिया बैताल
अब अगिया बैताल, काँपती भय से छाया
हरियाली रो रही, गयी अब ममता-माया
अब दोपहरी शांत, मिट गई गहमी-गहमा
रोषावेशित सूर्य, देख वट दादा सहमा

- रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर' 
१ मई २०२१

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