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        पूरब का मुख

 

पूरब का मुख ज्यों
लाल-लाल है

सूरज ऊगा किरणें मचलीं
और हवा पहने है हँसली
धूप के सुनहरे
हुए बाल हैं

फसलें खलिहानों में आईँ
गंदुम की हो रही गहाई
पानी के बिना
पोखर-ताल हैं

झोर रहे आमों को लड़के
भरी दुफरिया या फिर तड़के
गर्मी से सबका
बुरा हाल है

- अविनाश ब्यौहार 
१ मई २०२१

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