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        अनल के गीत

 

भर दिए अंगार किसने
सूर्य के दृग में

ज्वाल जंगल की हवा के साथ
घूमती फिरती उठाती माथ
झुलस देती मुँह निकलता
जो पथिक मग में

धूल तक गाती अनल के गीत
सिंधु के तट तक हुए भयभीत
खड़ी लहरें एक चुप्पी
बांध कर पग में

- गिरि मोहन गुरू
१ मई २०२१

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