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        ग्रीष्म बाला

 

हाहाकार मचाती आई,
हाँफ रही है बाला

दाँत पीसती क्रोधित हो
धूप गरम चुँधियाये
यौवन-रस में चिन्ता की
गठरी क्यों लटकाए
नजरों से बहती ज्वाला
घोंप दिया यों भाला

स्वर्णधार किरणे जगमग
फटेहाल पर बरसे
पीले पीले वृक्ष-वसन
खून सना मुख कैसे
रेतीली आँधी सूखी
बहे स्वेद का नाला

देवी ने
रस आमो का
छक कर पीना चाहा
वर्षा हो, समिधा डाली
यज्ञकुंड में स्वाहा
शांत करो तो फूल बने
अंगारों की माला

- हरिहर झा 
१ मई २०२१

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