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        भीषण गर्मी

 

भीषण गर्मी खोज रही है
छाँव ठिकाना

आँगन में झाड़ू देकर
दूर नीम पर टाँगे सूरज
घर भीतर दालानें रँगता
पोंछ पसीना मन का धीरज

भरी अलगनी आलस ओढ़े
नींद बहाना

खोल दुफरिया बाज़ारों में
सजा दुकानें बेचे आगी,
लू लपटों की करे दलाली
हवा झुलसती फिरती भागी

उभर गया है नदिया का फिर
घाव पुराना

खेत उघारे मरुथल प्यासे
आँधी उगले धूल बवंडर,
धरती तापे घाम अँगारा
कुआँ बावड़ी प्यास समंदर
बूँद बूँद की क़ीमत क्या है
जग पहचाना

- जयप्रकाश श्रीवास्तव 
१ मई २०२१

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