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         गर्मियाँ है

 

देह का बोला पसीना-
गर्मियाँ हैं

बर्फ़ की पिघली शिलायें-
जल हुई हैं
सूखकर नदियाँ, नहर-
मरुस्थल हुई हैं
आग का आया महीना-
गर्मियाँ हैं

दिन सुनाता आग के-
जलते तराने
पेड ठँडी छाँव के हैं
शामियाने
मन हुआ लू का कमीना-
गर्मियाँ हैं

- कृष्ण भारतीय
१ मई २०२१

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