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        आ गई मैं

 

खट- खट-खट-खट आ गई मैं
जीवन की उष्मा साथ लिए
नव ऊर्जा नया प्रकाश लिए
अंधकार का ह्रास लिए

पालों से ठिठुराते थे जब
सिकुड़-सिकुड़ अकुलाते थे जब
शीत हवाओ, वर्षा, कम्पन
से छुटकारा चाहते थे जब
शाम ढले ही लौट के आना
बंदीगृह सी रात बिताना
अंधकार से घबरा जाना
तुम ही मुझे बुलाते थे तब
मन खाली और उदास लिये
खट-खट-खट-खट आ गई मैं
जीवन की उष्मा साथ लिए.

उस ठिठुरन से उद्धार लिये
आई हूँ मैं सत्कार करो
झोली ककड़ी, तरबूज आम भर
द्वार खोल, सब स्वाद भरो
अब अंधकार से छूट छूट
झूमो कि हर तरफ धूप धूप
नाचो कि हर तरफ रूप रूप
खुशियों में बाधा नहीं कोई
गाओ सुख का आभास लिये
खट-खट-खट आ गई मैं
जीवन की उष्मा साथ लिए.

- मधु संधु
१ मई २०२१

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