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        गरमी में

 

प्यासा कौआ सोच रहा है

तीखी गर्मी, तेज बगूले
धक्कड़, धूल, धुआँ
प्यासा कौआ सोच रहा है
खोदू कहाँ कुआँ

कंकड़ लिये भटकता दर-दर
दरके घड़े मिले
बूँद बूँद रिस गया रेत के
ढूहे खड़े मिले
बैठ मुँडेरे सोच रहा है
क्या अपशकुन हुआ

चिंताओं की धूप चिलकती
फिर से शीश चढ़ी
पलक झपकते हुई ताड़ सी
मुनिया आज बढ़ी
मन्दिर-मन्दिर माथा टेके
माँगे बाप दुआ

जितने पाँव समेटे
उतनी चादर सिकुड़ गई
सीते मन के घाव देह की
तुरपन उधड़ गयी
पलट पलट कर पाँसे खेले
शातिर समय जुआ

पंख लगा कर उड़ी नींद
सपने सब नखत हुये
इच्छाओं के चंचल पंछी
बगुला भगत हुये
आशाएँ हो गयीं
विवशता के हाथों बँधुआ

जप -तप, पूजा, मान-मनौती
व्यर्थ गये सारे
राम नाम से उठा भरोसा
मंत्र सभी हारे
झेल रहा मौसम के तेवर
नये नये रमुआ

- मधु शुक्ला
१ मई २०२१

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