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        गर्मी ने तेवर दिखलाया

 

गर्मी ने तेवर दिखलाया
राही ढूँढ़े ठंडी छाया
छाँव नहीं मिलती पंछी को
मरूथल अब शहरों तक आया

प्यासा भटक रहा है वन में
लिए भेड़ संग इक चरवाहा
आग बबूला होकर घूमें
सड़कें,गलियाँ औ" चौराहा
व्याकुल होकर घूम रहे सब
राहत का पल एक न पाया

सूरज आग उगलता फिरता
दोपहरी भट्टी हो जाती
शामें झुलसी-झुलसी लगती
रातें साँसों को सुलगाती
धू -धू जलती पुरवाई में
उचटा मन कुछ समझ पाया

-सुरेन्द्र कुमार शर्मा 
१ मई २०२१

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