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        ग्रीष्म ऋतु

 

आ गई है ग्रीष्म ऋतु अब
सूर्य की तपती हुई लेकर चुभन

शांति से देखो खड़ा है आज भी पीपल पुराना
सरसराहट कर रहे पत्तों का मधुरिम गुनगुनाना
कर रहा जैसे प्रतीक्षा एक प्यारे से पथिक की
स्वप्न में डूबा हुआ मनमोहता
होकर मगन

साँझ का है वक्त देता जब सुनाई गीत सुन्दर
कौतुहल वश झाँकता पश्चिम दिशा से सूर्य झुककर
दूर कोई सुप्त मन में मुस्कुराती यौवना नव
हो रहा साकार सपना खिलखिलाता
ज्यों गगन

दिन बड़े हैं रात छोटी चाँदनी में जगममाती
सांत्वना देती मगर है शीघ्रता से बीत जाती
सूर्य जल्दी से धमक जाता सुबह ही तप्त होकर
प्रार्थना में अर्घ्य दे हम कर रहे
मन से नमन

बढ़ रहा है धूप में भी साथ अपने प्यास लेकर
राह में प्याऊ मिलेगा बस यही शुभ आस लेकर
ग्रीष्म की अपनी कहानी का बना है पात्र मानव
है विवश बस देखने साकार
ऋतुओं का चलन

- सुरेन्द्रपाल वैद्य
१ मई २०२१

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