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गाँव में अलाव
जाड़े की कविताओं को संकलन

गाँव में अलाव संकलन

स्मृतियों के अलाव


ठंडे बर्फ के मैदानों के नीचे
यादों की बहती एक नदी
कहाँ आ गया हूँ मैं
लगता है
बीत चुकी एक सदी

झील की जमी सतह पर
फिसलते इठलाते नृत्यरत
नव यौवन, नव युगल
नीचे बहता उष्ण जल
मीन सी तैरती स्मृतियाँ
और मेरा जीवित बीता कल

झील के उस पार
देखता हूँ एक मणि-वन
हिमवर्षा के बाद बना
जैसे शीशे का उपवन
शाखाओं ने पहनी
उँगलियों पर हीरा कणी
स्फटिक सी जमी धरा
जिसमें प्रतिबिम्बित जगमगाती
बीती एक घड़ी

जमे झरने के नीचे
बहता जल कल-कल
इन तरंगों में जाग उठा
फिर मेरा बीता कल
उठा भावनाओं का बहाव
और फिर
जल उठा मन:स्तल पर
बचपन की लोहड़ी का अलाव

सोचता हूँ उठ के
बीते कल से नाता फिर जोड़ लूँ
और नहीं तो
फायर प्लेस की जलती ज्वाला में
तिल रेवड़ी डाल
लोहड़ी का सकुन तो कर लूँ

- सुमन कुमार घेई

  इस कविता में मैंने एक शब्द हिम वर्षा का प्रयोग किया है। शायद फ्रीज़िंग रेन का उपयुक्त अनुवाद नहीं कर पाया। फ़्रीजिंग रेन ऐसी वर्षा होती है कि किसी भी तरह पर गिरते ही शीशे की तरह पारदर्शी बर्फ़ में बदल जाती है। जब ऐसी बर्फ से ढके पेड़ों पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो वह क्रिस्टल की तरह जगमगाने लगती है। मणि-वन से मेरा यही अर्थ है।

--सुमन कुमार घई


 

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