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गाँव में अलाव
जाड़े की कविताओं को संकलन

गाँव में अलाव संकलन

अलाव

जलते अलाव के चारों ओर
लोगो का संकुचित घेरा
उठती चिनगारियाँ भर रही उष्मा

सुलगती लकड़ियों का धुआँ
और आँखो से झरता पानी
कड़वाहट के साथ
पीठ पर सहते थपेड़े

सामने दावानल पार करते ही लक्ष्मण रेखा
ठन्ड के आगोश मे जाएँगे
सोचकर
सब यहीं सिमट गये अलाव के पास

भुने आलू
और शकरकंद की सोंधी सोंधी खुश्बू
हरी चटनी में धनियाँ की सुगन्ध
भर रही मुँह में पानी

जलती लकडियाँ राख का ढेर
बीनते छीलते
जीभ को जलाते चटनी के चटकारे लेते
भूल गए ठन्ड
गर्म गर्म आलू के साथ।।

- बृजेश कुमार शुक्ला

   

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