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पतित पावनी और पानी

 


 
पतित पावनी तुम
मैं सादा सा पानी
माँ गंगे, मगर
एक अपनी कहानी

उतरी धरा पर
कभी शुभ्रवसना
अमृतमयी
मधु रससिक्त रसना
पावन, सरस
चाहें सृष्टि सजानी

वरद हस्त शिव का
कठिन भी सरल है
सीख लिया परहित
पीना गरल है
जन्म से मरण तक
शरण, गत न जानी

कभी रौद्र रूपा
कभी क्षीणतोया
सदा वत्सला माँ!
कलुष जन का धोया
बही अनवरत,
पाया खारा -सा पानी

सतत सुखप्रदा माँ!
दया ही करे
तेरा नाम रट- रट
जगत ये तरे
न भूलें कभी
रीत अपनी निभानी

पतित पावनी तुम
मैं सादा-सा पानी
माँ गंगे, मगर
एक अपनी कहानी

-ज्योत्स्ना शर्मा
१७ जून २०१३

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