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गंगा- कुछ क्षणिकाएँ

 

 


गंग जमुन की बहती धार
प्यास भुजाएँ
खेत हजार
अन्न लहलहायें
सींचें धरती बारम्बार

-मंजुल भटनागर



खिल खिल करती
मचलती, खेलती
आह्लादित उर्मियों को
अपने सीने पर
बच्ची सी चढ़ाये, चिपकाए
मस्ती में झूमती, इठलाती
बहने वाली गंगा
खो गयी है
जाने कहाँ ?
 
-अनिल कुमार मिश्र



गंगा है
माँ की माँ
तभी तो
समा जाती है
गंगा की गोद में
एक दिन माँ भी।

-राजेंद्र कांडपाल



इस देश की बुद्धिमत्ता
कुम्भकर्ण की नीद सो रही है
उसे पता ही नहीं
कि गंगा बीमार हो रही है

-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
१७ जून २०१३

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