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यह नदी भागीरथी है

 

 
हिमालय से समुंदर तक बही है
यह नदी भागीरथी है

खेत से
उन बस्तियों तक बो रही हरियालियाँ
और अधरों पर धरे वह स्नेह की मधु प्यालियाँ
ढाई आखर प्रेम की बाती रही है
यह नदी भागीरथी है

जो भरे
अनुराग उसको सहज ही बैराग देती
लोक की संवेदना को और जलती आग देती
जिन्दगी आसान-सी यात्रा नहीं है
यह नदी भागीरथी है

टूट कर
तट पर खड़े हैं जो किले इतिहास के
युद्ध केवल युद्ध कहते दूर के कुछ पास के
समय के इतिहास की गाथा सही है
यह नदी भागीरथी है 
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-डॉ. ओमप्रकाश सिंह
१७ जून २०१३

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