अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

विश्वासों का दीप

 

 
गंगा मैया हर लेना तुम,
सारा कलुष हमारा
करूँ अर्चना उस माटी की
जिस पर चरण तुम्हारा

बूँद-बूँद जल की अमृत बन
बनती जीवन धारा
विश्वासों का दीप जलाकर
स्नेह-समर्पित सारा
लहरों सा चंचल मन मेरा
धड़कन जल की धारा
स्वप्न भँवर से मन को छलते
तुम ही एक सहारा

जीवन की शाश्वत गति खोकर
जब राह मुक्ति की पाऊँ
तेरे आँचल की छाया हो
चिर निद्रा में सो जाऊँ
हाट, घाट, गलियाँ, गलियारे
बीता बचपन सारा
मुझे बुलातीं हैं स्मृतियाँ
स्नेहिल संसार तुम्हारा

-पद्मा मिश्रा
१७ जून २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter