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गंगा को बहने दो





 

प्यासी धरती पर गंगा को बहने दो,
सदियों से सीचा है इसने,
अब तुम भी कुछ इस के निमित्त कर डालो,

गंगोत्री के गर्भ से सृजित, कर्म स्थल माँ भारती है,
शक्ति रूप शिवमय है, शपथ है भागीरथ की,
हम सबकी पालन हारी, रूप सुंदरी धरती की,
माँ भारती का दुःख सभालो,
आग में कुछ घृत डालो,
आरती माँ की सजा लो!

मौक्षे का वरदान देती, पञ्च तत्व में लीन करती,
सुंदर बन को सींच लाती, पाखियो के घर सजाती,
शृंखलाओ में हिमालय की प्यार का वो रंग भरती,
अवसान के कुछ नम पलो में,
आज वह कुछ मांगती है-
माँ की दुविधा खोल डालो ,
आज गंगा को बचा लो !!

प्राचीन की स्वर्णिम महक सी, कालजयी रचना सरीखी,
धुन कोई है बांसुरी सी, चितेरे की कलपना सी,
मन में है प्राण अमृत, प्रकृति में है प्रेरणा सी,
गुण असंख्य निस्वार्थ देती, धरनि का भविष्य संजोती,
रज भाल पर इसकी सजा लो,
पाप अपने धो भी डालो !!

-मंजुल भटनागर
४ जून २०१२

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