अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

जीवन की धार





 

नगर बसाये तटों पर, हरियाये वन बाग
सूख रहा है स्रोत वह, जाग बावरे जाग

मात्र नदी गंगा नहीं, यह जीवन की धार
शुद्ध ह्रदय, ले आत्म बल, अब तो इसे संवार

अगर हौसला ह्रदय में, हो दृढ़ निश्चय स्नेह
रहित प्रदूषण गंग हो, तनिक नहीं संदेह

नगर निकट आते हुई, श्लथ लहरें गति मंद
तड़प कहे भागीरथी, करो प्रदूषण बंद

डॉ. मधु प्रधान
४ जून २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter