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तीन क्षणिकाएँ





 

१- गंगा सागर

गंगा नाम है
एक खामोश प्रवाह का
जिसमें तिरकर
शमित होते हैं ताप
हृदय में छिपाकर
पीड़ा का सागर
गंगा बन जाती है
गंगा सागर

२- काशी तट पर

काशी तट पर
गंगा का
असीम विस्तार
तट से टकरातीं
मिर्दुल तरंगें
मन पूछता है -
क्या यह वही
क्षीणकाय गोमुखी गंगा है ?

३- पतित पावनी

आँखों में उभरती है
अलकनंदा, पिंडर
मन्दाकिनी और यमुना
इनके सहज समर्पण ने ही
गंगा को बनाया
पतित पावनी गंगा

उर्मिला शुक्ला
२८ मई २०१२

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