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होली है!!

 

कड़कती हुई ग़ज़ल

होली पे लग रही है कड़कती हुई ग़ज़ल
रंगों में सराबोर, फड़कती हुई ग़ज़ल

अब जाम या सुराही का चर्चा न कीजिए
बोतल सी चढ़ रही है, लुढ़कती हुई ग़ज़ल

मानिन्दे-बर्क चमकेगी ये आसमान पर
शोलों की तरह दिल में भड़कती हुई ग़ज़ल

कानों से नहीं, दिल से सुनें आप लोग सब
दिल की तरह सीने में धड़कती हुई ग़ज़ल

जामे- शराब थी या कोई और चीज़ थी
देखो गिलास जैसी तड़कती हुई ग़ज़ल

मृगेन्द्र मक़बूल
१४ मार्च २०११

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