अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

होली है!!

 

उत्सव के रंग


चाहता हूँ
होली खेलने से पहले
नहाकर, सारा मैल धोकर
स्वयं को चमका लूँ

कि हर रंग
बहुत गहरे उतरे
और मन में अंकित कर दे
जीवन का इन्द्रधनुषी पहलू।

चाहता हूँ
होली खेलते वक़्त
पहनूँ सफ़ेद कपड़े
कि जन्म हो कैनवास पर
उत्सव की अनूठी कलाकृति का।

चाहता हूँ
होली खेलने के बाद
सँभालकर रखूँ इस कृति को
कि जब भी उदास होऊँ
हर रंग याद दिलाए
कि हम
उत्सव के रंग हैं

तुम्हारे आँसू हमें धुँधला नहीं सकते।

परमेन्द्र सिंह
२१ मार्च २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter