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होली है!!

 

आया वसन्त


क्षितिज तक लहरा उठा
सरसों का
पीताम्बर-सा
धरा पुलकित हो उठी
झूम उठे
सब दिग्-दिगन्त,
गुनगुनाता गीत नव
भ्रमर -संग
आया वसन्त।

खेलें आँखमिचौली
चंचल तितली
सहेलियाँ,
फूलों को चूमकर
बूझती हैं
ज्यों पहेलियाँ,
धरा का कण-कण रँगा
लहराया
सागर अनन्त।

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
२१ मार्च २०११

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